"" धर्म कोई पूजा पद्धति नहीं अपितु सर्वकालिक नियम है ""
"" शाश्वत, अनवरत, निर्बाध गति से चलने वाला सृष्टि का सर्वमान्य नियम ही धर्म कहलाता है। ""
"" किसी भी वस्तु ,वनस्पति या प्राणित्व का नैसर्गिक गुण ही वास्तविक रूप ही धर्म कहलाता है। "
"" साधारण शब्दों में प्रकृतित्व में निहित अंतर्निहित गुण ही धर्म है। ""
जैसे मानव में मनुष्यत्व , अश्व में अश्वत्व आदि
और थोड़ा विस्तृत श्रृंखला में प्रकृति पंचतत्व से मिलकर बनी है।
★ भूमि से गंध
★ जल से स्वाद
★ वायु से स्पर्श
★ अग्नि से रंग
★ आकाश से शब्द का बोध होता है।
धर्म को पूजा पद्धति कहना कालांतर में भाषा शैली का विकृत रूप का एक उदाहरण है और कुछ नहीं।
मानस जिले सिंह
【 यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी - मानस पँथ
उद्देश्य - सामान्य ज्ञान को व्यवहारिकता के साथ रखने में सहायक सिद्ध होना।
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