"" ना कोई पुस्तक "" पवित्र "" व ना ही अनुपयोगी होती है। ""
★★★ ज्ञान किसी पुस्तक में नहीं उसकी व्याख्या में ही निहित होता है। ★★★
जिसकी जैसी विवेचना वैसा ही विवेक आधारित संवाद या अभिव्यक्ति।
वरना एक ही विषय पुस्तक को पढ़ने वाले कुछ अज्ञानी ना रहते या कुछ विद्वान ना बन पाते।
★ एक पुस्तक जब किसी वर्ग विशेष का पवित्र ग्रन्थ के साथ - साथ जीवन शैली बनने लगे और ऊपर से अलग - अलग स्वार्थ सिद्धि पूर्ति करती उसकी व्याख्या निश्चित ही श्रेष्ठता की होड़ /अलगाव / कट्टरता / समाज के खण्डित / या फिर विध्वंस का मार्ग प्रशस्त करती है। ★
ज्ञान या निहितार्थ मानवीय मूल्यों के केन्द्रित होने पर ही सर्वश्रेष्ठ व सर्वकल्याणकारी साबित होता है।
स्पष्टता से जानने व समझने के लिए वीडियो सन्देश की प्रतीक्षा करें।
मानस जिले सिंह
【यथार्थवादी विचारक】
अनुयायी - मानस पँथ
उद्देश्य - शिक्षा का व्यवहारिक व मानवीय मूल्यों के केंद्रित होने पर बल।
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